~ कौड़ी,
कौड़ी,
चढ़ गई,
तिनका,
तिनका,
मैं उढ़ गई,
(काहे सब में बांट कर,
तु कमली ... खुद में,
इतनी अकेली पड़ गई?)
रेज़ा,
रेज़ा,
झढ़ गई,
माटी,
माटी,
मैं गढ़ गई ... ~
~ जाने कहाँ छुप जाती थी, जब कभी भी खु़द को ढूंढने निकलती थी। और यह सिलसिला बस मुसलसल रवां रहा। शायद चलने के साथ-साथ, यह ग़ायब हो जाने का हुनर जान लिया था, और क्या बख़ूबी इस्तिमाल में भी लिया।
मुस्तक़िल खोजने के बावजूद, कहीं मिल नहीं पाई खु़द से। वजूद कहाँ है, है भी के नहीं। ख़ेर...
इधर कुछ दो चार महीने से दिख जाती हूँ। तुम्हारी पढ़ने की मेज़ से सटी जो कुर्सी है ना, उस पर। कभी-कभी जब तुम खाना खाने बैठते हो दोस्तों के साथ, दूर से तुम्हे देखती हुई।
जानते हो, कल जब तुम खेल कर लौटे थे, और अपनी पसीने में भीगी कमीज़ बिस्तर पर फ़ेक... गुस्लख़ाने में घुस गए थे। तुम्हारी कमीज़ मैंने ही छुपाई थी। पर तुम्हे परेशान ना देख सकी ज्यादा देर। तकिये के नीच सेे मिल गई थी ना?
मेरी यह आदत जानकर, किसी रोज़ तुम पूछ तो ना बैठोगे, कि कब तक यूं ही मोजूद रहूंगी...
इर्द गिर्द तुम्हारे...
तुम में...
शायद घबरा कर हज़ार साल बोल दूँ मैं। पर सोचती हूँ, हज़ार साल कुछ कम तो नहीं। ख़ेर...
तुम्हारी मुहब्बत में,
सिर्फ तुम्हारी ~
~ हवाले सारे, निरे ज़ुबानी निकले,
नहीं ताल्लुक़ ये रूहानी निकले,
चढ़ती ना मेहंदी कोरी हथेली पर,
कहाँ महबूब मेरे रूमानी निकले। ~
~ Joie de vivre,
Because you are.
खुशपाश हूँ, खुशग़वार हूँ,
क्योंकि तुम हो।~
~ Mine,
A night divine,
For every trip & prance,
On the tongue of your dance,
Moon sneaks into my cerulean
wine;
A kiss, a glance, embosomed;
I’m in trance. ~
~ If I am of words;
And like a seraphic belle,
Poetry should be mine,
Then this ascetic lunacy,
Ought to become my spine.
An infidel to laid leeway,
Ye shalt see me swagger,
Past this staid, sober world,
For I—am—a—Sannyasini ,
In my own right! ~
~ ना उतरो ए सीलन, दिल की खुश्क़ दीवारों में मेरी,
मुझ पर से ना झढ़ जाए, यह तवक्क़ो की पपड़ी। #कमली
तवक्क़ो - Expectation / उम्मीद ~
~ थी ख़बर,
पर
कैसे
मुनकिर
हो
जाती
श़ब
के
उस
फरेब
से,
मैं
शाम
थी,
था
मुक़र्रर
मेरा
रोज़
ब-रोज़
यूं
ही
गुज़र
जाना। #कमली
*** मुनकिर – Disbeliever ~
~ जिंदगी ने
मुझसे,
या
मैंने
जिंदगी
से,
कुछ सुलह सी कर ली है।
रोज़-रोज़ की किच-किच,
नोक-झोंक, झगडे फसाद,
को दर-किनार कर,
वो चाय गरम करती है,
बार-बार,
अौर मेरी नज़र,
कोनों में अख़बार के,
मसरूफियत... ढूंड ही लेती है। ~
~ इश्क़ ए शैदाई... कैसी मलंग हुई मैं,
फलक पे उसके, कटी पतंग हुई मैं,
मुझसा वो बोले, उसकी फिर हो लूं,
ग़ुबार सी कमली, उसके संग हुई मैं। ~
~ Be'inteha ishq ki, aur na meri, hadd thi,
Aur na doobne ki, teri wo' ek jo zidd thi,
Le doobi humain...
Tanha main, kitne barson,
doobti rahi,
Thanda chulha, ba'khuda, phookti rahi,
Geele they lamhe...
Tund mijaazi mein teri,
chaand gal gaya,
Ye ishq bhi aatish giir tha, saath jal gaya,
Sitaare num hain...
Tu mujh mein, aur main tujh
mein,
Aur ishq benayaazi, kuch kam hain...
Ab, kuch kam hain.~
~ सताता था जो, उससे तर्क ए ताल्लुक़ कर,
नींदों के सिक्के, रोज़ शब, हम गवाने लगे। ~
~ Sticky,
Dark,
Muck & slime,
As yet another honor,
On your elbow and palm;
Cover me into that.
Grab me,
From my waist,
And rub off,
All of yourself,
Onto me, into me;
Make me complete.
Ah, me! Intrepid and replete!
... एक ही
मिट्टी से हम दोनों ... ~
~ Your words contour your face.
I am a writer;
I'd only read face! ~
~ न कभी
छू कर भी,
वो
कितना छूता है। #कमली
Whilst like air,
Love becomes,
Willowy & palpable...
...... when Plectrum—
Held loosely,
In his long, lissome,
Deft fingers—
Plucks the strings,
On the Lute,
Of supple Silence.
He touches me,
I touch him,
And yet our skins remain Unwed. ~
~ Kehna gulfishaan se, ki
barg-e-gul abhi taba'ah hai,
Ye shirkat apni, gulistaan ki, kisi aur roz ki rakh len.
Petals have withered, to the
sprinkler of joys let this be known,
For the unpaid visit to the rose-garden, be delayed until unknown! ~
~ नहीं
सी, मैं हो
जाती हूँ,
यूँ ... तुम में
खो जाती हूँ। #कमली
I never was.
Would never be.
An illusion I am,
That plays on your mind.
Like a fascination,
And yours truly!
Outside you, I do not exist,
Simply... not meant to be. ~
~ How else,
Am I supposed,
To redeem,
My soul...
Than to love myself,
Through you,
In you,
When I am gone.
... और तुम
कहते हो,
मुझे खुद से मोहब्बत नहीं ... ~
~ Caked
soil,
Slanting as slopes;
Weeping white conifers,
At the heart of it,
One drooping silver fir;
And like a midnight magical midget,
Blue antelope descending from them.
Walking on a narrow road,
Winding through...
I've wanted to find,
A land, an escape as such,
For really long...
How strange and quaint is it,
The way, these souls connect!
And transcend...
मैं अब यहाँ ... हूँ ही नहीं ... ~
~ नीली चादर,
गहरी, मखमली सी,
खोकल सीपीयां, किनारों पर, टाकती रही ...
चाँद का आंसू,
सोया था, तलेटी में,
मैं पहले क्यों कभी... एेसे... डूबी ही नहीं ... ~
~ मैं तुझसी हूँ ... मैं तुझमे ही हूँ,
अगर तुझसी नहीं, नहीं तुझमे कहीं। ~
~ Wo'... ek khalaa hai,
Jahan ab'r tehelte hain...
Zinda rehne,
Aur na zinda rehne ke beech,
Mujhe wahan baithna hai,
Paer lat'ka ke,
Uss shagaaf mein...
*Khalaa - Vacuum
*Ab'r - Clouds
*Shagaaf - Cleft / fissure / crack ~
~ Raaste mere, tum mein jaakar, ghum hain kahin;
Gar jo na karoon tumse, phir dil araasta kya hai? ~
~ Breathing
shallow;
Locked,
In nude affection,
For a cynosure;
I wish to fly away,
But my wings...
I bartered them off,
For a wuthering home,
That fancies me, forevermore. ~
~ My
old bard,
Besotted, with his fez and farce,
Emulating a lyrebird,
Crouches,
On his favorite divan,
And harps on...
I,
A warped yarn, with intermittent lies,
Dances away,
To the tune of,
Wreathed glories,
Born of perpetual follies.
This velvety, fuchsia fire that I burn-in,
Is mine only, to see… ~
~ Pry my writhing heart open, and
Into it let night bleed, unto death,
Only to earn a gaze from my 'love'
Whom I breathe, in each breath. ~
~ Paa kar tujhe, maine... phir aise khoya tha...
Vasl ki shab mein ghula, hijr-e-yaar goya tha! ~
~ Let
us fey,
And fake a felicitous death;
So as to wake up again,
From our death-beds.